उन्होंने कहा कि एलब्रुस (18510 फीस) चोटी पर तिरंगा फहराकर उन्हें उतना ही फख्र महसूस हो रहा है, जितना देश की सरहदों की रक्षा करने वाले सिपाही को कोई जंग जीतने पर होता है।
24 जुलाई को एलब्रुस चोटी को फतह करने वाली नूरपुर के सुल्याली की आकृति पत्रकारों से बातचीत में बोल रही थीं। बताया कि दिल्ली से मिशन पर रवाना होते वक्त एलब्रुस चोटी पर तिरंगा फहराने की तमन्ना थी। इसी जज्बे के साथ छह दिन की चढ़ाई में पीछे मुड़कर नहीं देखा।
24 जुलाई को भारतीय समयानुसार दोपहर करीब डेढ़ बजे एलब्रुस चोटी पर तिरंगा फहराया। इस दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। 19 से 23 जुलाई तक ब्रेड और चने खाकर एक दिन में 6-7 घंटे सफर किया।
24 जुलाई को सुबह साढे़ पांच बजे उठकर इसी जोश के साथ आगे बढ़ीं और सफलता प्राप्त की। नूरपुर के विधायक अजय महाजन ने सुल्याली में आयोजित सम्मान समारोह में आकृति की सफलता पर बधाई दी और प्रदेश सरकार से प्रोत्साहन और मदद का आश्वासन दिया।
अरुणिमा सिन्हा से मिली प्रेरणा
आकृति ने बताया कि उनके दल में अरुणिमा सिन्हा भी थीं, जो एक टांग से अपंग थीं। अपंग होने के बावजूद हौसले बुलंद थे और ऊंचाई चढ़ने के साथ-साथ अपने दल को भी प्रेरित कर रही थीं। आकृति ने बताया कि जब कभी उनका हौसला डगमगाने लगा तो अरुणिमा को देखकर काफी हिम्मत मिली।
पिता ने कर्ज ले पूरा किया सपना
आकृति हीर ने कहा कि एलब्रुस चोटी फतह करने का सपना उनके पिता ने बैंक से कर्ज लेकर पूरा किया है। सरकार मदद करे या कोई कंपनी स्पांसर करे तो वह 7 उपमहाद्वीप सहित माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने का भी माद्दा रखती हैं। वह बेहद साधारण परिवार से संबंध रखती हैं।इसके लिए बहुत धन की जरूरत है।